What Does Shodashi Mean?

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चत्वारिंशत्त्रिकोणे चतुरधिकसमे चक्रराजे लसन्तीं

सा नित्यं रोगशान्त्यै प्रभवतु ललिताधीश्वरी चित्प्रकाशा ॥८॥

The reverence for Goddess Tripura Sundari is evident in the way her mythology intertwines with the spiritual and social cloth, offering profound insights into the character of existence and The trail to enlightenment.

Charitable acts such as donating food items and dresses for the needy also are integral to your worship of Goddess Lalita, reflecting the compassionate element of the divine.

The supremely lovely Shodashi is united in the heart with the infinite consciousness of Shiva. She removes darkness and bestows light-weight. 

लक्ष्मीशादि-पदैर्युतेन महता मञ्चेन संशोभितं

कैलाश पर्वत पर नाना रत्नों से शोभित कल्पवृक्ष के नीचे पुष्पों से शोभित, मुनि, गन्धर्व इत्यादि से सेवित, मणियों से मण्डित के मध्य सुखासन में बैठे जगदगुरु भगवान शिव जो चन्द्रमा के अर्ध भाग को शेखर के रूप में धारण किये, हाथ में त्रिशूल और डमरू लिये वृषभ वाहन, जटाधारी, कण्ठ में वासुकी नाथ को लपेटे हुए, शरीर में विभूति लगाये हुए देव नीलकण्ठ त्रिलोचन गजचर्म पहने हुए, शुद्ध स्फटिक के समान, हजारों सूर्यों के समान, गिरजा के अर्द्धांग भूषण, संसार के कारण विश्वरूपी शिव को अपने पूर्ण भक्ति भाव से साष्टांग प्रणाम करते हुए उनके पुत्र मयूर वाहन कार्तिकेय ने पूछा —

Goddess Shodashi has a 3rd eye on the forehead. She is clad in red costume and richly bejeweled. She sits on a lotus seat laid over a golden throne. She is shown with 4 arms during which she retains 5 arrows of bouquets, a noose, a goad and sugarcane as a bow.

हार्दं शोकातिरेकं शमयतु ललिताघीश्वरी पाशहस्ता ॥५॥

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हंसोऽहंमन्त्रराज्ञी website हरिहयवरदा हादिमन्त्रार्थरूपा ।

यस्याः शक्तिप्ररोहादविरलममृतं विन्दते योगिवृन्दं

Lalita Jayanti, a substantial festival in her honor, is celebrated on Magha Purnima with rituals and communal worship functions like darshans and jagratas.

यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।

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